जो लहरों से आगे नज़र देख पाती तो, तुम जान लेते की मैं क्या सोचता हूँ.....
वो आवाज़ तुमको भी भेद जाती तो तुम जान जाते मैं क्या सोचता हूँ.....
जिद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता तो खिडकियों से आगे भी तुम देख पाते ....
आँखों से आदतों की जो पलकें हटाते तो तुम जान लेते की मैं क्या सोचता हूँ.....
मेरी तरह खुद पर होता जरा भरोसा तो कुछ दूर तुम भी साथ चले आते
रंग मेरी आँखों का बाँटते ज़रा तो कुछ दूर तुम भी साथ चले आते....
नशा आसमान का भी जो चूमता तुम्हे भी...हसरतें तुम्हारी नया जनम पाती ....
खुद दुसरे जनम में मेरी उड़ान छूने कुछ दूर तुम भी साथ आते.........
आप सभी का स्वागत है ! हिंदी इस दुनिया की सबसे खूबसूरत भाषा है और इसी भाषा के कुछ अंश मात्र मैं यंहा प्रस्तुत कर रहा हूँ.
Sunday, December 26, 2010
जूते कहाँ उतारे थे !!!
छोटी छोटी छितराई यादें बिछी हुई हैं लम्हों की लावन पर
नंगे पैर उनपर चलते चलते इतनी दूर चले आये
हैं के अब भूल गए हैं –
जूते कहाँ उतारे थे .
एडी कोमल थी , जब आये थे .
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी
और नाज़ुक ही रहेगी
इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे....
सच, भूल गए हैं
की जूते कहाँ उतारे थे....
पर लगता है,
अब उनकी ज़रुरत नहीं.".......
नंगे पैर उनपर चलते चलते इतनी दूर चले आये
हैं के अब भूल गए हैं –
जूते कहाँ उतारे थे .
एडी कोमल थी , जब आये थे .
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी
और नाज़ुक ही रहेगी
इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे....
सच, भूल गए हैं
की जूते कहाँ उतारे थे....
पर लगता है,
अब उनकी ज़रुरत नहीं.".......
Tuesday, December 21, 2010
गर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं !!
गर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं"...
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं"...
Wednesday, August 25, 2010
एक सैनिक कश्मीर से !
मैं भारतीय सैनिक आजकल कश्मीर में पदस्थ हूँ |
हथगोलों गोलियूं वा गालियूं का अभ्यस्त हूँ||
मेरे घर में भी हैं पत्नी और बच्चे|
वे सब हैं आप जैसे मासूम और सच्चे||
वे रोज़ मेरी कुशलता की कामना करते हैं|
रोज़ एक अनचाहे दर्द का सामना करते हैं||
मुझ पे रोज़ हथगोले बरसाए जाते हैं|
आतंकवादी भीड़ में कहीं खो जाते हैं||
मेरी हत्या मानवअधिकारों का उल्लंघन नही होती|
मेरे शव पर कोई आँख भी नही रोती||
मेरी मृत्यु पत्रकारों के लिए मसाला नही होती|
शायद इसीलिए कोई कलाम हम पे नहीं रोती||
यदि ये हाथ किसी नागरिक तक पहुँच जाते हैं|
तो हम अपने आप को सुर्ख़ियो में पाते हैं||
क्यूँ उनका जीवन अनमोल और हमारा बेमोल है!
इंसानियत के नाम पे ये कैसा तोल है..??
हथगोलों गोलियूं वा गालियूं का अभ्यस्त हूँ||
मेरे घर में भी हैं पत्नी और बच्चे|
वे सब हैं आप जैसे मासूम और सच्चे||
वे रोज़ मेरी कुशलता की कामना करते हैं|
रोज़ एक अनचाहे दर्द का सामना करते हैं||
मुझ पे रोज़ हथगोले बरसाए जाते हैं|
आतंकवादी भीड़ में कहीं खो जाते हैं||
मेरी हत्या मानवअधिकारों का उल्लंघन नही होती|
मेरे शव पर कोई आँख भी नही रोती||
मेरी मृत्यु पत्रकारों के लिए मसाला नही होती|
शायद इसीलिए कोई कलाम हम पे नहीं रोती||
यदि ये हाथ किसी नागरिक तक पहुँच जाते हैं|
तो हम अपने आप को सुर्ख़ियो में पाते हैं||
क्यूँ उनका जीवन अनमोल और हमारा बेमोल है!
इंसानियत के नाम पे ये कैसा तोल है..??
Tuesday, June 15, 2010
हजारों ख्वाहिशें ऐसी - मिर्जा गालिब
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले
--------------------------------------------
Meanings: चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले
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Meanings: चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है - By Ram Prasad Bismil
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
------------------------------------------------
Meaning: रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
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Meaning: रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith
कदम कदम बढ़ाये जा - Anthem of नेताजी की आज़ाद हिन्द फ़ौज - कैप्टन राम सिंह (Captain Ram Singh)
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
हिम्मत तेरी बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े
तू खाक में मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
चलो दिल्ली पुकार के
ग़म-ए-निशाँ संभाल के
लाल क़िले पे गाड़ के
लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
हिम्मत तेरी बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े
तू खाक में मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
चलो दिल्ली पुकार के
ग़म-ए-निशाँ संभाल के
लाल क़िले पे गाड़ के
लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
कोशिश करने वालों की- हरिवंशराय बच्चन
few people think that it is from सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला")
--------------------------------------------------------------
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
--------------------------------------------------------------
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी- Subhadra Kumari Chauhan
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई - गुलजार
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद, फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं, तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे, जैसे हम को पुकारता है कोई ।
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई...
आईना देख के तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद, फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं, तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे, जैसे हम को पुकारता है कोई ।
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई...
मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे- गुलजार
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
मकान- कैफी आजमी
आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।
ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने ।
इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर
उन दिनों की जो गुफाओ मे गुजारे हम ने ।
हाथ ढलते गये सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नये नक्श निखारे हम ने ।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने ।
आँधियाँ तोड़ लिया करती थी शामों की लौं
जड़ दिये इस लिये बिजली के सितारे हम ने ।
बन गया कसर तो पहरे पे कोई बैठ गया
सो रहे खाक पे हम शोरिश-ऐ-तामिर लिये ।
अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ऐ-पेयाम की थकान
बंद आंखों में इसी कसर की तसवीर लिये ।
दिन पिघलाता है इसी तरह सारों पर अब तक
रात आंखों में खटकतीं है स्याह तीर लिये ।
आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।
ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने ।
इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर
उन दिनों की जो गुफाओ मे गुजारे हम ने ।
हाथ ढलते गये सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नये नक्श निखारे हम ने ।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने ।
आँधियाँ तोड़ लिया करती थी शामों की लौं
जड़ दिये इस लिये बिजली के सितारे हम ने ।
बन गया कसर तो पहरे पे कोई बैठ गया
सो रहे खाक पे हम शोरिश-ऐ-तामिर लिये ।
अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ऐ-पेयाम की थकान
बंद आंखों में इसी कसर की तसवीर लिये ।
दिन पिघलाता है इसी तरह सारों पर अब तक
रात आंखों में खटकतीं है स्याह तीर लिये ।
आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।
मशाल- महेन्द्र भटनागर
बिखर गये हैं जिन्दगी के तार-तार
रुद्ध-द्वार, बद्ध हैं चरण
खुल नहीं रहे नयन
क्योंकि कर रहा है व्यंग्य
बार-बार देखकर गगन !
भंग राग-लय सभी
बुझ रही है जिन्दगी की आग भी
आ रहा है दौड़ता हुआ
अपार अंधकार
आज तो बरस रहा है विश्व में
धुआँ, धुआँ !
शक्ति लौह के समान ले
प्रहार सह सकेगा जो
जी सकेगा वह
समाज वह —
एकता की शृंखला में बद्ध
स्नेह-प्यार-भाव से हरा-भरा
लड़ सकेगा आँधियों से जूझ !
नवीन ज्योति की मशाल
आज तो गली-गली में जल रही
अंधकार छिन्न हो रहा
अधीर-त्रस्त विश्व को उबारने
अभ्रांत गूँजता अमोघ स्वर
सरोष उठ रहा है बिम्ब-सा
मनुष्य का सशक्त सर !
रुद्ध-द्वार, बद्ध हैं चरण
खुल नहीं रहे नयन
क्योंकि कर रहा है व्यंग्य
बार-बार देखकर गगन !
भंग राग-लय सभी
बुझ रही है जिन्दगी की आग भी
आ रहा है दौड़ता हुआ
अपार अंधकार
आज तो बरस रहा है विश्व में
धुआँ, धुआँ !
शक्ति लौह के समान ले
प्रहार सह सकेगा जो
जी सकेगा वह
समाज वह —
एकता की शृंखला में बद्ध
स्नेह-प्यार-भाव से हरा-भरा
लड़ सकेगा आँधियों से जूझ !
नवीन ज्योति की मशाल
आज तो गली-गली में जल रही
अंधकार छिन्न हो रहा
अधीर-त्रस्त विश्व को उबारने
अभ्रांत गूँजता अमोघ स्वर
सरोष उठ रहा है बिम्ब-सा
मनुष्य का सशक्त सर !
Sunday, June 13, 2010
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दील समझता है या मेरा दील समझता है।
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है।
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है , जो ना समझे तो पानी है।
समंदर पीर का अम्बर है लेकीन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुनले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रवर कोई कुमद्दीनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दील में कोई खवाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब कीस्सा मोहब्बत का
मै कीस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा
जींदगी की असली उड़ान अभी बाकी है हमारे इरादों का इम्तीहान अभी बाकी है।
अभी तो नापी है सीर्फ मुट्ठी भर ज़मीन आगे सारा आसमान अभी बाकी है ॥...
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ...........
मगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दील समझता है या मेरा दील समझता है।
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है।
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है , जो ना समझे तो पानी है।
समंदर पीर का अम्बर है लेकीन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुनले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रवर कोई कुमद्दीनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दील में कोई खवाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब कीस्सा मोहब्बत का
मै कीस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा
जींदगी की असली उड़ान अभी बाकी है हमारे इरादों का इम्तीहान अभी बाकी है।
अभी तो नापी है सीर्फ मुट्ठी भर ज़मीन आगे सारा आसमान अभी बाकी है ॥...
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ...........
मै क्या , मेरा परिचय क्या!
मै क्या , मेरा परिचय क्या! जीवन हे स्वरलहरी मेरा, कोई भिन्न मुझसे लय क्या !! मै क्या , मेरा पारिचय क्या! घुल जाऊ रेवा लहरों मे , शाम सहर और पहरों मे, धुप छाव अठखेली मे , माँ कि झोली मैली मे, छा जाऊ गर हर मन पे, फिर जिव मरण का अभिनय क्या !! मै क्या , मेरा परिचय क्या ! कर्म यग्य आहुति बन, परमाथ जीवन अर्पण, सत्य पथ अग्रसर हो , तन मन का करदू तरपन, हर मन प्रगति दीप जले तो, जिव जगत मे तम भय क्या !! मै क्या , मेरा पारिचय क्या!
बुझती हुई आंखो को एक ख्वाब दिखा रक्खा है ,
इन डूबती सांसो को जस्बात दिखा रखा है !
हो जाये दीदारे इश्क खाक होने से पहले ,
उम्मीद मै इस हम ने शम्मा को जला रक्खा है !
टुटा था दिल हमारा , पलके न फिर भी झलकी,
आंसू हम ने पीना , आंखो को सिखा रक्खा है !
आयेंगे मिलने मुझसे वो कब्ब्र पर भी मेरी ,
रास्तों पे उनके हमने फूलों को बिछा रक्खा है !
कोई तो कहदे उनसे , जस्बाते दिल ये मेरे ,
गमे दर्द हम ने आपनी, नज्मो मै लिखा रक्खा है !
हो जाये दीदारे इश्क खाक होने से पहले ,
उम्मीद मै इस हम ने शम्मा को जला रखा है !!
क्या लाया क्या ले जाऊंगा, बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग बिताये लम्हों कि पर, भीनी खुशबू दे जाऊंगा !!
संग बिताई सारी राते , लब चुप चुप बस कहती आंखे !
इन् आँखों कि भाषा मै ही, अपनी हसरत कह जाऊंगा !!
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
तेडे मेडे तट के रस्ते , साथ चले है जिन पे हसते !
कदम मिला फिर चल ना सका तो , संग नदी बन बह जाऊंगा !!
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग मिली है सारी खुशींया, साथ उठाये थे सारे गम !
अब दे सारी खुशींया तुझ को, सब गम खुद ही सह जाऊंगा॥
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
क्या लाया क्या ले जाऊंगा, बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग बिताये लम्हों कि पर, भीनी खुशबू दे जाऊंगा !!
बुझती हुई आंखो को एक ख्वाब दिखा रक्खा है ,
इन डूबती सांसो को जस्बात दिखा रखा है !
हो जाये दीदारे इश्क खाक होने से पहले ,
उम्मीद मै इस हम ने शम्मा को जला रक्खा है !
टुटा था दिल हमारा , पलके न फिर भी झलकी,
आंसू हम ने पीना , आंखो को सिखा रक्खा है !
आयेंगे मिलने मुझसे वो कब्ब्र पर भी मेरी ,
रास्तों पे उनके हमने फूलों को बिछा रक्खा है !
कोई तो कहदे उनसे , जस्बाते दिल ये मेरे ,
गमे दर्द हम ने आपनी, नज्मो मै लिखा रक्खा है !
हो जाये दीदारे इश्क खाक होने से पहले ,
उम्मीद मै इस हम ने शम्मा को जला रखा है !!
क्या लाया क्या ले जाऊंगा, बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग बिताये लम्हों कि पर, भीनी खुशबू दे जाऊंगा !!
संग बिताई सारी राते , लब चुप चुप बस कहती आंखे !
इन् आँखों कि भाषा मै ही, अपनी हसरत कह जाऊंगा !!
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
तेडे मेडे तट के रस्ते , साथ चले है जिन पे हसते !
कदम मिला फिर चल ना सका तो , संग नदी बन बह जाऊंगा !!
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग मिली है सारी खुशींया, साथ उठाये थे सारे गम !
अब दे सारी खुशींया तुझ को, सब गम खुद ही सह जाऊंगा॥
बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
क्या लाया क्या ले जाऊंगा, बस मिट्टी मै रह जाऊंगा !
संग बिताये लम्हों कि पर, भीनी खुशबू दे जाऊंगा !!
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