मैं भारतीय सैनिक आजकल कश्मीर में पदस्थ हूँ |
हथगोलों गोलियूं वा गालियूं का अभ्यस्त हूँ||
मेरे घर में भी हैं पत्नी और बच्चे|
वे सब हैं आप जैसे मासूम और सच्चे||
वे रोज़ मेरी कुशलता की कामना करते हैं|
रोज़ एक अनचाहे दर्द का सामना करते हैं||
मुझ पे रोज़ हथगोले बरसाए जाते हैं|
आतंकवादी भीड़ में कहीं खो जाते हैं||
मेरी हत्या मानवअधिकारों का उल्लंघन नही होती|
मेरे शव पर कोई आँख भी नही रोती||
मेरी मृत्यु पत्रकारों के लिए मसाला नही होती|
शायद इसीलिए कोई कलाम हम पे नहीं रोती||
यदि ये हाथ किसी नागरिक तक पहुँच जाते हैं|
तो हम अपने आप को सुर्ख़ियो में पाते हैं||
क्यूँ उनका जीवन अनमोल और हमारा बेमोल है!
इंसानियत के नाम पे ये कैसा तोल है..??