मेरे खुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे
में जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे
यह रोशनी के ताक्कुब में भागता हुआ दिन
जो थक गया है तो अब उसको मुख्तसर कर दे
में जिंदगी की दुआ मांगने लगा हूँ बोहत
जो हो सके तो दुआओं को बे-असर कर दे
सितारा-ए-सहरी डूबने को आया है
ज़रा कोई मेरे सूरज को बाखबर कर दे
कबीला-दार कमानें कड़कने वाली हैं
मेरे लहू की गवाही मुझे निडर कर दे
मेरी ज़मीन मेरा आखरी हवाला है
सो में रहूं न रहूं उस को बार-आवर कर दे
इफ्तिखार आरिफ
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