Sunday, December 26, 2010

जूते कहाँ उतारे थे !!!

छोटी छोटी छितराई यादें बिछी हुई हैं लम्हों की लावन पर
नंगे पैर उनपर चलते चलते इतनी दूर चले आये
हैं के अब भूल गए हैं –
जूते कहाँ उतारे थे .

एडी कोमल थी , जब आये थे .
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी
और नाज़ुक ही रहेगी
इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे....

सच, भूल गए हैं
की जूते कहाँ उतारे थे....
पर लगता है,
अब उनकी ज़रुरत नहीं.".......

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