Sunday, June 13, 2010

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता है।

मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दील समझता है या मेरा दील समझता है।

मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है।

यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है , जो ना समझे तो पानी है।

समंदर पीर का अम्बर है लेकीन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता

मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुनले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता

भ्रवर कोई कुमद्दीनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दील में कोई खवाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब कीस्सा मोहब्बत का
मै कीस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा

जींदगी की असली उड़ान अभी बाकी है हमारे इरादों का इम्तीहान अभी बाकी है।
अभी तो नापी है सीर्फ मुट्ठी भर ज़मीन आगे सारा आसमान अभी बाकी है ॥...

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ...........

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