Wednesday, January 5, 2011

तमन्नाओं को ज़िंदा, आरज़ुओं को जवां कर लूँ

तमन्नाओं को ज़िंदा, आरज़ुओं को जवां कर लूँ
यह शर्मीली नज़र कह दे तो कुछ गुस्ताखियां कर लूँ

बहार आई है बुलबुल दर्द-ए-दिल कहती है फूलों से
कहो तो मैं भी अपना दर्द-ए-दिल तुम से बयां कर लूँ

हजारों शोख़ अरमां ले रहे हैं चुटकियाँ दिल में
हया इनकी इजाज़त दे तो कुछ बे-बाकियां कर लूँ

कोई सूरत तो हो दुनिया-ए-फानी में बहलने की
ठहर जा ए जवानी मातम-ए-उम्र-ए-रवां कर लूँ

चमन में हैं बहम परवाना-ओ-शमा-ओ-गुल-ओ-बुलबुल
इजाज़त हो तो मैं भी हाल-ए-दिल अपना बयां कर लूँ

किसे मालूम कब किस वक़्त किस पर गिर पडे बिजली
अभी से मैं चमन में चल कर आबाद आशियाँ कर लूँ

मुझे दोनों जहाँ में एक वोह मिल जाएँ गर अख्तर
तो अपनी हसरतों को बे-नयाज़-ए-दो-जहाँ कर लूँ

अख्तर शीरानी

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