Wednesday, January 5, 2011

वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ

वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ
वो शब्-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

फुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ

थी वो एक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ

ऐसा आसान नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ

फिक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और यह वबाल कहाँ

गालिब

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