वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ
वो शब्-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ
फुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ
थी वो एक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
ऐसा आसान नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ
फिक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और यह वबाल कहाँ
गालिब
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