Wednesday, January 5, 2011

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया* से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

***[pindaar= pride] [maraasim=relations] [giryaa=weeping, crying]

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