दोस्त जितने भी थे मज़ार में हैं
गालिबन मेरे इंतज़ार में हैं
एक शाएर बना खुदा-ए-सुखन
जो रसूल-ए-सुखन थे, ग़ार में हैं
क्या सबब है कि एक मौसम में
कुछ खिजां में हैं, कुछ बहार में हैं
ख़ार समझो न तुम इन्हें हरगिज़
सांप के दांत गुल के हार में हैं
शिम्र-ओ-फ़िरऔन कब हुए मरहूम
उनके औसाफ रिश्तेदार में हैं
सबके सब काविश फ़रिश्ता-खिसाल
ऐब जितने हैं खाकसार में हैं
काविश बद्री
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