Wednesday, January 5, 2011

जलवा दिखलाये जो वोह खुद अपनी खुद-आराई का

जलवा दिखलाये जो वोह खुद अपनी खुद-आराई का
नूर जल जाये अभी चश्म-ए-तमाशाई का

रंग हर फूल में है हुस्न-ए-खुद आराई का
चमन-ए-दहर है महज़र तेरी यकताई का

अपने मरकज़ की तरफ माएल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तेरी अंगडाई का

देख कर नज़्म-ए-दो-आलम हमें कहना ही पड़ा
यह सलीका है किसे अंजुमन आराई का

गुल जो गुलज़ार में हैं गोश-बर-आवाज़ अजीज़
मुझसे बुलबुल ने लिया तर्ज़ यह शैवाई का

(अजीज़ लखनवी)

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